एक नज़्म !
उस दिन मैं ऑफिस से निकलने के बाद घर जाने के लिए मेट्रो स्टेशन पर खड़ा ट्रैन का इंतज़ार कर रहा था के तभी मधु का फ़ोन आया ! उसने पूछा “ हाँ जी निकले दफ्तर से ?” ‘ हाँ , बस मेट्रो स्टेशन पर हूँ , ट्रैनआती ही होगी ’ ‘ भीड़ होगी , मैं रखती हूँ , आप ध्यान से आओ " कह कर उसने फ़ोन रख दिया ! बस तभी हवा की रफ़्तार से आती ट्रैन पलक घपकटे ही थम गयी ! ट्रैन के दरवाज़े खुले और पैसेंजर्स का सैलाब उमड़ पड़ा। अगले ही पल बहार खड़े लोग ट्रैन मैं घुसे और अपनी अपनी जगह बनाने मैं लग गए ! ट्रैन में जगह ना होने के कारण मैं ट्रैन के दूसरे डब्बे की तरफ बड़ा और कोचेस के इंटरसेक्शन के पास जगह पाकर रुक गया ! मेरे ठीक सामने एक 26-27 साल का नौजवान खड़ा था ! यह नौजवान फैज़ अहमद फैज़ की एक नज़्म गुनगुना रहा था और किसी एक गहरी सोच मैं डूबा हुआ था ! ये नज़ारा थोड़ा अजीब था मेरे लिए , आज के नौजवान जहा हनी सिंह और बादशाह और न जाने क्या क्या सुनते हैं ,